tag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.comments2023-06-13T06:22:54.673-04:00सरयूपारीणSudhir (सुधीर)http://www.blogger.com/profile/13164970698292132764noreply@blogger.comBlogger103125tag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-26069345505225554242016-08-20T07:35:48.877-04:002016-08-20T07:35:48.877-04:00किसी के विषय में कैसी भी कविता बहुत से लोग...किसी के विषय में कैसी भी कविता बहुत से लोग बना सकते हैं ऐसा ही अगर सत्य होने लगा तो समाज का बचाना तो दूर समाप्त होना तय है...काका हो या चाचा कवी अगर यह सब कुछ जनता ही था तो जोकर क्यों बना रहता जीवन भर....वेड में यज्ञ का अर्थ साधना , निर्माण और सिद्धि तथा कृति हैं और भी अर्थ हैं तो कैसे यज्ञ को परिभषित सही करोगे...पढ़ लेना...ठीक से समझ कर ..दुसरे लोग कहते हैं परन्तु भुगतना खुद पड़ता है...समझ कर काम और गली दें कोई भी किसी को का या चहक अ कवी बनकर कुछ भी अख देकाग इतिहास में सब दर्ज है...भविष्य पृरण की बातें सत्य साबित हो रहें हैं उनको भी पढना...<br /> Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07947348448104224940noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-19285187483775445992015-12-07T01:53:45.353-05:002015-12-07T01:53:45.353-05:00Ati sahashi kadam hai sudheerji...soch or vishay d...Ati sahashi kadam hai sudheerji...soch or vishay dono hi bahut uttam hai. .Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/15580806646853754942noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-77252525662016475622014-08-28T07:06:40.072-04:002014-08-28T07:06:40.072-04:00आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि...आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा. अंतरजाल पर हिंदी समृधि के लिए किया जा रहा आपका प्रयास सराहनीय है. कृपया अपने ब्लॉग को “ब्लॉगप्रहरी:एग्रीगेटर व हिंदी सोशल नेटवर्क” से जोड़ कर अधिक से अधिक पाठकों तक पहुचाएं. ब्लॉगप्रहरी भारत का सबसे आधुनिक और सम्पूर्ण ब्लॉग मंच है. ब्लॉगप्रहरी ब्लॉग डायरेक्टरी, माइक्रो ब्लॉग, सोशल नेटवर्क, ब्लॉग रैंकिंग, एग्रीगेटर और ब्लॉग से आमदनी की सुविधाओं के साथ एक <br />सम्पूर्ण मंच प्रदान करता है.<br />अपने ब्लॉग को ब्लॉगप्रहरी से जोड़ने के लिए, यहाँ क्लिक करें http://www.blogprahari.com/add-your-blog अथवा पंजीयन करें http://www.blogprahari.com/signup . <br />अतार्जाल पर हिंदी को समृद्ध और सशक्त बनाने की हमारी प्रतिबद्धता आपके सहयोग के बिना पूरी नहीं हो सकती.<br />मोडरेटर<br />ब्लॉगप्रहरी नेटवर्क <br />BLOGPRAHARIhttps://www.blogger.com/profile/03012511809083961456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-34215255654229394922013-03-04T04:48:01.341-05:002013-03-04T04:48:01.341-05:00देश को बर्बाद करने वाले अग्रेजो के परम चाटुकार पंड...देश को बर्बाद करने वाले अग्रेजो के परम चाटुकार पंडित ही थे , अपने स्वार्थ के समाज में जातिवाद फ़ैलाने व् भेदभाव करने वाले पंडित ही थे । आज सबसे बड़े चोर गद्दार ब्राहमण ही हैं । <br /><br />ब्राम्हण के सत्संग में सुख नहि पावे कोय !<br />राजा बाली - हरिश्चन्द्र ने दिया राज सुख खोय !!<br />दिया राज सुख खोय - हरी जिन जनक दुलारी !<br />तीन लोक के नाथ लात तिनहू को मारी !!<br />कह काका कविराय जगत का यही है थम्मन !<br />कितना भी भला करो - दागा करेगा बाम्हन !!Unknownhttps://www.blogger.com/profile/00900138302072417644noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-9182890487089467112013-03-04T04:44:33.050-05:002013-03-04T04:44:33.050-05:00
मम् कायात्स मुत्पन्न, स्थितौ कायोऽभवत्त। कायस्थ ...<br /><br />मम् कायात्स मुत्पन्न, स्थितौ कायोऽभवत्त। कायस्थ इति तस्याथ, नाम चक्रे पितामहा।। (पद्म पुराण पाताल खण्ड) कायेषु तिष्एतति-कायेषु सर्वभूत शरीरेषु। अन्तर्यामी यथा निष्एतीत।। (पद्य पुराण पाताल खण्ड)<br /><br />(काया से प्रकट होनें का तात्पर्य यह है कि समस्त ब्रह्म-सृष्टि में श्री चित्रगुप्त जी की अभिव्यक्ति। अपनें कुशल दिव्य कर्मों से तुम कायस्थ वंश के संस्थापक होंगे। तुम्हें समस्त प्राणि मात्र की देह में अर्न्तयामी रूप से स्थित रहना होगा। जिससे उनकी आंतरिक मनोभावनाएं, विचार व कर्म को समझने में सुविधा हो।)<br /><br />चित्रं वचो मायागत्यं, चित्रगुप्त स्मृतो गुरूवेरू। सगत्वा कोट नगर, चण्डी भजन तत्पररू।। (पद्य पुराण पाताल खण्ड)<br /><br />(ब्रह्माजी ने नवजात पुत्र को यह भी स्पष्ट किया कि आप की उत्पत्ति हेतु मैने अपने चित्त को एकाग्र कर पूर्ण ध्यान में गुप्त किया था अतः आपका नाम चित्रगुप्त ही उपयुक्त होगा। आपका वास नगर कोट में रहेगा और आप चण्डी के उपासक होंगे।)<br />Unknownhttps://www.blogger.com/profile/00900138302072417644noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-18806038325684160562013-03-04T04:42:54.381-05:002013-03-04T04:42:54.381-05:00
अधिकारेषु लोका नां, नियुक्तोहत्व प्रभो। सहयेन बि...<br /><br />अधिकारेषु लोका नां, नियुक्तोहत्व प्रभो। सहयेन बिना तंत्र स्याम, शक्तरू कथत्वहम्।। (अहिल्या कामधेनु संहिता)<br /><br />(श्री धर्मराज जी के निवेदन पर विचार हेतु श्री ब्रह्मा जी पुनरू ध्यानस्त हो गये। श्री ब्रह्मा जी एक कल्प तक ध्यान मुद्रा में रहे, योगनिद्रा के अवसान पर कार्तिक शुल्क द्वितीया के शुभ क्षणों में श्री ब्रह्मा जी ने अपने सन्मुख एक श्याम वर्ण, कमल नयन एक पुरूष को देखा, जिसके दाहिने हाथ में लेखनी व पट्टिका तथा बायें हाथ में दवात थी। यही था श्री चित्रगुप्त जी का अवतरण।)<br /><br />सन्निधौ पुरुषं दृष्टवा, श्याम कमल लोचनम्। लेखनी पट्टिका हस्त, मसी भाजन संयुक्तम्।। (पद्मपुराण-पाताल खण्ड)<br /><br />(इस दिव्य पुरूष का श्याम वर्णी काया, रत्न जटित मुकुटधारी, चमकीले कमल नयन, तीखी भृकुटी, सिर के पीछे तेजोमय प्रभामंडल, घुघराले बाल, प्रशस्त भाल, चन्द्रमा सदृश्य आभा, शंखाकार ग्रीवा, विशाल भुजाएं व उभरी जांघे तथा व्यक्तित्व में अदम्य साहस व पौरूष झलक रहा था। इस तेजस्वी पुरूष को अपने सन्मुख देख ब्रह्मा जी ने पूछा कि आप कौन है? दिव्य पुरूष ने विनम्रतापूर्वक करबद्ध प्रणाम कर कहा कि आपने समाधि में ध्यानस्त होकर मेरा आह्नवान चिन्तन किया, अतरू मैं प्रकट हो गया हूं । मैं आपका ही मानस पुत्र हूं। आप स्वयं ही बताये कि मैं कौन हूं ? कृपया मेरा वर्ण- निरूपण करें तथा स्पष्ट करें कि किस कार्य हेतु आपने मेरा स्मरण किया। इस प्रकार ब्रह्माजी अपने मानस पुत्र को देख कर बहुत हर्षित हुये और कहा कि हे तात! मानव समाज के चारों वर्णों की उत्पत्ति मेरे शरीर के पृथक-पृथक भागों से हुई है, परन्तु तुम्हारी उत्पत्ति मेरी समस्त काया से हुई है इस कारण तुम्हारी जाति कायस्थ होगी।)<br /><br />Unknownhttps://www.blogger.com/profile/00900138302072417644noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-84407904690550043042013-03-04T04:41:50.476-05:002013-03-04T04:41:50.476-05:00भारत भूमि पर अनेक कायस्थ राजाओं ने राज्य किया जहाँ...भारत भूमि पर अनेक कायस्थ राजाओं ने राज्य किया जहाँ एक तरफ कायस्थ राज काज में निपुण हैं वही अपनी बौधिक क्षमता से भारत एवं विश्व को आलोकित किया |<br />वेद पुराणों में श्री चित्रगुप्त महाराज व् उनके वन्सजो का विवरण तथा कायस्थ नाम करण -<br /><br />ब्राहस्य मुख मसीद बाहु राजन्यरू कृतरू। उरुतदस्य वैश्य, पद्यायागू शूद्रो अजायतरू।। (अहिल्या कामधेनु संहिता)<br /><br />(अर्थात् नव निर्मित सृष्टि के उचित प्रबन्ध तथा समाज की सुव्यवस्था के लिए श्री ब्रह्मा जी ने अपनें मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य तथा चरणों से शूद्र उत्पन्न कर वर्ण चतुष्टय (चार वर्णों) की स्थापना की। सम्पूर्ण प्राणियों के शुभ-अशुभ कार्यों का लेखा-जोखा रखनें व पाप-पुण्य के अनुसार उनके लिये दण्ड या पुरस्कार निश्चित करने का दायित्ंव श्री ब्रह्मा जी ने श्री धर्मराज को सौंपा। कुछ समय उपरान्त श्री धर्मराज जी ने देखा कि प्रजापति के द्वारा निर्मित विश्व के समस्त प्राणियों का लेखा-जोखा रखना अकेले उनके द्वारा सम्भव नहीं है। अतरू धर्मराज जी ने श्री ब्रह्मा जी से निवेदन किया कि श्हे देव! आपके द्वारा उत्पन्न प्राणियों का विस्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। अतरू मुझे एक सहायक की आवश्यकता है। जिसे प्रदान करनें की कृपा करें।)<br />Unknownhttps://www.blogger.com/profile/00900138302072417644noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-46077194027192963082012-08-30T12:43:13.174-04:002012-08-30T12:43:13.174-04:00काफी यथार्थपरक लेख है .अवश्य ही वर्ण व्यवस्था के ...काफी यथार्थपरक लेख है .अवश्य ही वर्ण व्यवस्था के मूल सिद्धांत का निष्पादन किया गया है . साथ में वर्तमान के पुर्वाग्रहियों की अज्ञानता भी परिलक्षित होती है .<br /><br />बहुत बहुत धन्यवाद satyadeohttps://www.blogger.com/profile/10477526477349873542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-53642773565165222522012-04-05T15:05:54.322-04:002012-04-05T15:05:54.322-04:00जो ज्ञान बांटे ज्ञानी हो वह ब्राहमण जैसे अध्...जो ज्ञान बांटे ज्ञानी हो वह ब्राहमण जैसे अध्यापक <br />जो वीर हो युद्ध कला जानता वह क्षत्रिय जैसे सैनिक <br />जो व्यापार कला में माहिर हो वैश्य जैसे व्यापारी <br />जो सेवक हो वह सूद्र जैसे किशान<br /> ब्रजेन्द्र दीक्षितbrajendra dixithttps://www.blogger.com/profile/16093619809282580431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-87923851585271441822011-06-27T04:07:17.753-04:002011-06-27T04:07:17.753-04:00sir article useful haisir article useful haiamit kumarhttps://www.blogger.com/profile/09655242963220533307noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-8063525205163122552011-06-25T02:08:02.466-04:002011-06-25T02:08:02.466-04:00GREAT ARTICLE.LEKAKH KO PRANAM!!JAY SHREE RAM.GREAT ARTICLE.LEKAKH KO PRANAM!!JAY SHREE RAM.ATC BLOGhttps://www.blogger.com/profile/00429577176343802955noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-57637106008591852952011-03-03T00:24:57.289-05:002011-03-03T00:24:57.289-05:00पंडितजी... वर्णव्यवस्था पर मेरी एक संशोधनात्मक पुस...पंडितजी... वर्णव्यवस्था पर मेरी एक संशोधनात्मक पुस्तका प्रकाशित हुई हैं । कई श्रृतियोंका निष्कर्ष एवं ब्रह्मसूत्र व दर्शन संग्रहोसे कुछ उसमें चयन किया हैं । या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता सप्तशतिमें जाति को एक शक्ति का रूप माना हैं । वैचित्रता एक नैसर्गिक शक्ति हैं । ब्रह्माण्ड का कोई भी भाग हो या काल का कोई भी क्षण हो, यह सदैव दृष्टिगोचर होती ही है। कहीं धनी गरीब का भेद - कहीं गोरे काले का - कहीं बुद्धिजीवी मूर्ख - कहीं ऊंचे नीचे का - जाति भेद कभी भी मिटाया नहीं जा सकता वह प्राकृतिक महाशक्ति हैं । हमारे ऋषियोने इस सत्यको स्वीकारते हुए वर्णव्यवस्था का गठन वेदकाल में ही किया हैं । जो चीज नित्यरूप से विद्यमान है, उसे सुनियोजित क्यों न करें । पूर्वजन्मस्य संस्कारा के हिसाबसे योनि प्राप्त होती हैं और जन्म से ही जाति गणना की यथार्थता बनती हैं । गीता के चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्म विभागशः का लोग स्वल्पबुद्धि से गुणकर्म को छोडकर अर्थघटन करते हैं । यद्यपि कपूय चरणा कपूय योनिं प्राप्नुयात् जैसी कई श्रुतियों को तार्किक एवं दर्शनात्मक अभिगम से भी स्वीकृत करनी ही पडेगी । विशेष कृपया संपर्क करें । ईमेल - panditpp@gmail.com ppp.siddhpur@gmail.com Blog http://gudhharth.blogspot.com/Vichar Vatikahttps://www.blogger.com/profile/13823257620101818544noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-89402935435838376222011-03-03T00:19:02.738-05:002011-03-03T00:19:02.738-05:00पंडितजी वर्णव्यवस्था पर मेरी एक संशोधनात्मक पुस्तक...पंडितजी वर्णव्यवस्था पर मेरी एक संशोधनात्मक पुस्तका प्रकाशित हुई हैं । कई श्रृतियोंका निष्कर्ष एवं ब्रह्मसूत्र व दर्शन संग्रहोसे कुठ चयन किया हैं । सप्तशतिमें जाति को एक शक्ति का रूप माना हैं । वैचित्रता एक नैसर्गिक शक्ति हैं । ब्रह्माण्ड का कोई भी भाग हो या काल का कोई भी क्षण हो, यह सदैव दृष्टिगोचर होगी ही । कहीं धनी गरीब का भेद - कहीं गोरे काले का - कहीं बुद्धिजीवी मूर्ख - कहीं ऊंचे नीचे का - जाति भेद कभी भी मिटाया नहीं जा सकता वह प्राकृतिक महाशक्ति हैं । हमारे ऋषियोनं इस सत्यको स्वीकारते हुए वर्णव्यवस्था का गठन वेदकाल में ही किया हैं । जो चीज नित्यरूप से है उसे सुनियोजित क्यों न करें । पूर्वजन्मस्य संस्कारा के हिसाबसे योनि प्राप्त होती हैं और जन्म से ही जाति गणना की यथार्थता बनती हैं । गीता के चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्म विभागशः का लोग स्वल्पबुद्धि से गुणकर्म को छोडकर अर्थघटन करते हैं । यद्यपि कपूय चरणा कपूय योनिं प्राप्नुयात् जैसी कई श्रुतियों को तार्किक एवं दर्शनात्मक अभिगम से भी स्वीकृत करनी पडेगी । विशेष कृपया संपर्क करें । ईमेल - panditpp@gmail.com ppp.siddhpur@gmail.com Blog http://gudhharth.blogspot.com/Vichar Vatikahttps://www.blogger.com/profile/13823257620101818544noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-49036521634384311792010-09-12T00:48:50.803-04:002010-09-12T00:48:50.803-04:00jaise ki hamare 4 yug hai usi prakar hamri 4 avsth...jaise ki hamare 4 yug hai usi prakar hamri 4 avsthaye hsi 1 satyug yani valawstha 2 treta yani kishor avastha yuva avastha3dwapar 4 kalyug yani bradha avasthagyan singhhttps://www.blogger.com/profile/10504087374905111501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-81819148163975255692010-08-14T00:40:42.714-04:002010-08-14T00:40:42.714-04:00Bhai hum to aap kai murid hoo gayaBhai hum to aap kai murid hoo gayaAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/07499570337873604719noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-22729548761478761502010-06-08T23:32:44.344-04:002010-06-08T23:32:44.344-04:00Bahut sundar prayaas.. Lage rahe, vichalit naa hoy...Bahut sundar prayaas.. Lage rahe, vichalit naa hoyen.जयंत - समर शेषhttps://www.blogger.com/profile/13334653461188965082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-69068833144784691002010-05-09T05:47:30.774-04:002010-05-09T05:47:30.774-04:00वर्ण-व्यवस्था के नाम पर भले कितने ही कसीदे काढ़े जा...वर्ण-व्यवस्था के नाम पर भले कितने ही कसीदे काढ़े जाएं परन्तु यह समझने की बात है कि आदिकाल से अब तक सबसे ज्यादा इससे लाभ किसे होता रहा और हो रहा है। ऐसा लगता है कि वर्ण-व्यवस्था बर्बर युग की देन है, सभ्य युग की नहीं। वेदों में दासों का उल्लेख आया है। दास आकाश से नहीं टपके हुए प्राणी नहीं थे। शोषणवादी परजीवी समूहों ने धर्म की जेल में जाति की बेड़ियाँ से बाँधकर जिन श्रमजीवियों को रखा था-वही दास थे । मुझे यह व्यवस्था मुट्ठी भर लोगों के हितों के लिए बहुसंख्यकों के श्रम-दोहन की और उन्हें गुलाम बनाने की एक सोची समझी साजिश लगती है।डॉ० डंडा लखनवीhttps://www.blogger.com/profile/14536866583084833513noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-61676169800386786062010-04-12T05:01:11.818-04:002010-04-12T05:01:11.818-04:00阿彌陀佛 無相佈施
不要吃五辛(葷菜,在古代宗教指的是一些食用後會影響性情、慾望的植
物,主要有...阿彌陀佛 無相佈施<br /><br /><br />不要吃五辛(葷菜,在古代宗教指的是一些食用後會影響性情、慾望的植<br />物,主要有五種葷菜,合稱五葷,佛家與道家所指有異。<br /><br />近代則訛稱含有動物性成分的餐飲食物為「葷菜」,事實上這在古代是稱<br />之為腥。所謂「葷腥」即這兩類的合稱。 葷菜<br />維基百科,自由的百科全書<br />(重定向自五辛) 佛家五葷<br /><br />在佛家另稱為五辛,五種辛味之菜。根據《楞嚴經》記載,佛家五葷為大<br />蒜、小蒜、興渠、慈蔥、茖蔥;五葷生啖增恚,使人易怒;熟食發淫,令<br />人多慾。[1]<br /><br />《本草備要》註解云:「慈蔥,冬蔥也;茖蔥,山蔥也;興渠,西域菜,云<br />即中國之荽。」<br /><br />興渠另說為洋蔥。) 肉 蛋 奶?!<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />念楞嚴經 *∞窮盡相關 消去無關 證據 時效 念阿彌陀佛往生西方極樂世界<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />我想製造自己的行為反作用力<br />不婚 不生子女 生生世世不當老師<br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br /><br />log 二0.3010 三0.47710.48 五0.6990 七0.8451 .85<br />root 二1.414 1.41 三1.732 1.73五 2.236 2.24七 2.646<br />=>十3.16 π∈Q' 一點八1.34謝明博馬陰人放購ˇ屁ㄉ人不董識貨ㄉ人精打細算ㄉ人霖宏百里緒恩駛溟含凾信攔醬油邱科信彰柏宏與簽纏t06單耳耽溺娟謝政道QKPb戲曲學院部大汐布袋戲model mode台北不婚獨子女 臺獨https://www.blogger.com/profile/02346328150693740298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-55679680229377043262010-03-28T01:36:08.097-04:002010-03-28T01:36:08.097-04:00लिखते रहिये. शुभकामनाएं!लिखते रहिये. शुभकामनाएं!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-10888917997871837222010-02-03T22:00:27.173-05:002010-02-03T22:00:27.173-05:00बहुत अच्छा सुधीर जी सत्कर्म से विचलित न होईये लगे ...बहुत अच्छा सुधीर जी सत्कर्म से विचलित न होईये लगे रहियेArvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-13245550030821228422010-02-02T03:17:13.732-05:002010-02-02T03:17:13.732-05:00ाज कल खूब लिख रहे हो तो हम समझ सकते हैं कि खूब पढ ...ाज कल खूब लिख रहे हो तो हम समझ सकते हैं कि खूब पढ भी रहे हो अब बहुत कुछ अच्छा पढने का इन्तज़ार रहेगा । आशीर्वाद्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-24627126245849169162010-02-01T23:44:58.734-05:002010-02-01T23:44:58.734-05:00kamal ka prayas kar rahe hain aap.kamal ka prayas kar rahe hain aap.Batangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-31902240959028410462010-02-01T22:29:16.296-05:002010-02-01T22:29:16.296-05:00हम नवनीत की प्रतीक्षा में हैं !हम नवनीत की प्रतीक्षा में हैं !Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-47392140862699454392009-11-25T14:36:32.372-05:002009-11-25T14:36:32.372-05:00राबर्ट वेन रसेल के बारे में क्या खयाल है करी रहे ह...राबर्ट वेन रसेल के बारे में क्या खयाल है करी रहे है तो उनका भी कर डालिये,वैसे कुछ आज़ की दशा पर अपना शोध प्रस्तुत करे तो कम से कम ६० सालों का गैप भर जाये.....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7024730211191839236.post-40814693369334667862009-11-25T14:32:26.635-05:002009-11-25T14:32:26.635-05:00सोचिये महान क्रुक जैसे व्यक्तियों ने हमारी जातियों...सोचिये महान क्रुक जैसे व्यक्तियों ने हमारी जातियों के बारे में न लिखा होता तो...........खैर कुछ मौजूदा हालातो पर भी लिखिये न कि नकल और अनुवाद, आप बड़ी मेहनत कर रहे है किन्तु इन अंग्रेजों के जाने की बाद का ६० वर्ष का इतिहास कौन लिखेगा यदि हम पुराने का ट्रान्सलएशन ही करते रहेKK Mishra of Manhanhttps://www.blogger.com/profile/11115470425475640222noreply@blogger.com